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मेरी प्रथम पुस्तक
"आर्य स्मृति"
के
मनु स्मृति
नामक अध्याय से....
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"आर्य स्मृति"
मनृस्मृति की दृष्टि में तो शूद्र से अस्पृश्य कुछ भी नहीं है। मनुस्मृति में ‘शूद्रवत् बहिष्कार्यः’ अर्थात् बहुत सी अछूत चीजो को शूद्र की तरह बाहर निकालने योग्य बहुतायत से आता है।
शूद्र के लिए मुण्डन,जनेऊ, अन्नप्राशन नहीं। यहाँ तक कि शूद्र के लिए ‘दण्ड धारण’ भी नहीं।
मनुस्मृति के षड्यन्त्रकारी द्विजों को भयङ्कर विभीषिका हुई कि कहीं शूद्र लोग अपने नाम हमारे जैसे सुन्दर और सुबोध न रख लें इस लिए नाम के सम्बोधन में भी वर्गीकरण कर दिया और कठोरता पूर्वक पालन करवाया गया।
वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया-
ब्राम्हण-शिवानंद,गौरीशंकर,सीताराम,राधेश्याम,
( ब्राम्हण-का सम्बोधन भगवान से)
क्षत्रिय-राम सिंह ,स्याम सिंह,राजेन्द्र सिंह
(सिंह से सम्बोधन)
वैश्य- हीरालाल पन्ना लाल मोती लाल
(का अर्थ/धन से सम्बोधन)
शूद्र- रामदास,प्रेमदास,घुरहू,कतवारू बरसाती,मेघई आदि
(नाम में भी दास का सम्बोधन या अस्पृश्य चीजों का सम्बोधन)
दीनता हीनता का भाव।
कोई वर्ण किसी दूसरे वर्ण का कार्य नहीं अपना सकता था !
लेखक
रजनीश शर्मा मार्तण्ड
प्रदेश अध्यक्ष
विश्व.विकास सुरक्षा दल
9455502007
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