Wednesday, 20 July 2016

सृष्टि के निर्माणकर्ता


भाइयों मित्रों हम जहाँ पर भी जायें सनातन परंपरा के बारे में जरूर बात करें और सृष्टि के निर्माण के बारे में अवश्य बताएं साथ में भगवान् श्री विश्वकर्मा का योगदान जरूर बताएं।

तथा कथित ब्राम्हणों क्षत्रियों वैश्यों को बताएं कि

==>जब ब्रम्हाण्ड में कुछ नहीं था तब हम विश्वकर्मा वंशियों ने कागज,कलम,दावात का आविष्कार किया फिर अक्षरों का आविष्कार करके कुछ लोगों को उसे लिखना पढ़ना सिखाया तब तुम ब्राम्हण हुए।
और पठन/पाठन का कार्य करने लगे

===>जब ब्रम्हाण्ड में कुछ नहीं था हमने तीर,तलवार,धनुष आदि हथियारों को बनाया उसको चला कर देखा और कुछ लोगों को चलाना बता दिया तब तुम जा कर क्षत्रिय बने।
और युद्ध करने के लायक हुये।

===>जब ब्रम्हाण्ड में कुछ नहीं था तब हमने तराजू बनाया किलो पौन सवैया आदि बनाया लोगों को जोड़ना घटाना सिखाया तब तुम जा कर वैश्य हुए ।
और व्यापार करने लायक हुए।

इस तरह मैंने तुम सबको सब कुछ दान किया इसलिये हम तुम सबके पूज्य हैं ।
हम विश्वकर्मा हैं

भाइयों मानव प्रजाति/जाति को हमने सबकुछ दिया मगर इन्होंने हमें क्या दिया । आप जहा भी हैं लोगों से अवश्य पूछें बताएं।

धन्यवाद
आप सबका
रजनीश मार्तण्ड
राष्ट्रीय सचिव
विश्व विकास सुरक्षा दल
9455502007
9455100070

मूर्ति पूजा द्वारा सभ्यता का विकास



सिर्फ मूर्ति-पूजा के कारण ही भारत में कई कलाओं का विकास हुआ है.मूर्ति-पूजा के कारण ही शिल्पकारी की कला का विकास हुआ,उसके बाद मूर्ति को स्थापित करने के लिए बड़े-बड़े भव्य मंदिरों का निर्माण होना शुरू हुआ  जिसके कारण भारतीय स्थापत्य कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई जिसके कारण आज जब हमारे अतीत पर ज्ञान-विज्ञान में पिछड़ेपन का आरोप लगाकर हमें अपमानित करने का प्रयास किया जाता है तो ये भव्य मंदिर ही हैं जो हमारे विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देती है और कहती है कि देखो मेरी इन ऊँची-ऊँची शिखरों को जो हमारी प्राच्य-विज्ञान की ऊंचाई का प्रमाण है.
    कई सालों के लगातार बर्बर,असभ्य विदेशी आक्रमणों ने जान-बूझकर भारत के सारे ज्ञान-विज्ञान को नष्ट कर दिए.उन्होंने सोमनाथ मंदिर,जो उस समय के लोगों के लिए आभियांत्रिकी की अबूझ पहेली थी,
    उसके जैसे अनगिनत मंदिरों को नष्ट कर दिया पर फिर भी समय की लहरों के इतने सारे थपेड़े के बावजूद आज भी बृहदेश्वर और कोणार्क के सूर्यमंदिर जैसे कई मंदिर विदेशियों को उसकी औकात बता रहे हैं.
    इन्हीं मंदिरों की छत्र-छाया में कई कलाओं का विकास हुआ जिसमें से एक भरतनाट्यम भी है जिसका विकास शरीर के विभिन्न भाव-भंगिमाओं के द्वारा  भगवान् को प्रसन्न करने के लिए किया गया था.
मूर्ति-पूजा का सम्बन्ध धर्म से है और धर्म का सम्बन्ध आस्था से.आप इन्हें अंधविश्वास समझिये या डर या लोगों का भगवान् के प्रति विश्वास और प्रेम या लोगों की आवश्यकता या विवशता,जो भी हो  पर ये मानव जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक हैं
    आप समझ सकते हैं कि ये धर्म,जिसे आजकल अपने आपको बहुत ही ज्यादा समझदार समझने वाले लोग डर और अंधविश्वास का नाम दे रहे हैं,इस एक धर्म ने ही लोगों को कितनी सारी कलाओं के विकास के लिए प्रेरित किया है.
     हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए ये धर्म,भगवान्,आस्था,मूर्ति-पूजा आदि अंधविश्वास हो पर ये अन्धविश्वास मानव के बहुत जरुरी है क्योंकि ये अंधविश्वास ही मानव को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है,उसे अच्छे काम के लिए प्रोत्साहित करती है और बुरे काम के लिए हतोत्साहित.धर्म ही है जो लोगों को एकजुट करती है,एक-दूसरे का सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित और मजबूर भी करती है.क्योंकि बहुत सारे व्रत ऐसे होते हैं जिन्हें संपन्न करने के लिए आपसी सहयोग आवश्यक होता है.
    इसके अलावे हमारे जीवन में खुशियाँ भरने वाले बहुत से त्योहार मूर्ति-पूजा से ही जुड़े हुए है.चाहे वो सरस्वती-पूजा हो जिसके उपलक्ष्य में स्कूल में बहुत तरह के कार्यक्रम होते हैं या फिर दशहरा का दुर्गा माँ की पूजा जिसमें लगने वाले  मेले का हमलोग साल भर प्रतिक्षा करते रहते हैं.
    जगन्नाथ रथ यात्रा जैसे भव्य महोत्सव  और दशहरा का त्योहार जिसमें देश भर में जगह जगह मेले लगते हैं,इनका आधार  मूर्ति पूजा ही है .इन मेलों का ग्रामीण जीवन में बहुत महत्व है क्योंकि गाँव के लोगों की कई जरूरतें इन्हीं से पूरी होती है.ये गाँव की अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाये रखने के लिए आवश्यक होते हैं.इसके अलावे मेला देखने के बहाने लोग अपने सगे-सम्बन्धियों और परिचितों से मिल भी लेते हैं.
     कुछ ना कुछ बुराइयाँ तो हर अच्छी चीजों के साथ जुडी ही होती है.धर्म या मूर्ति -पूजा के भी नकारात्मक पहलू हैं जिसे आज हिन्दू-विरोधी लोग प्रचारित करने में लगे हुए हैं पर जिस प्रकार भोजन हमें जीवन देती है और विषाक्त होने पर वो जीवन हर भी लेती है तो जरुरत भोजन को विषाक्त होने से बचाने की है न कि भोजन को त्यागने की,उसी प्रकार धर्म को त्यागने की नहीं बल्कि उसे दूषित होने से बचाकर जीवनोपयोगी बनाने की आवश्यकता है.

धन्यवाद
आप सबका
रजनीश शर्मा "मार्तण्ड"
राष्ट्रीय सचिव
विश्व विकास सुरक्षा दल
9455502007
9455080809