Thursday, 5 September 2019

विश्वकर्मा वंशावली

विश्वकर्मा

हम अपने प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है। कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

भगवान विराट विश्वकर्मा -
                             ने ब्रम्हाजी की उत्पत्ति करके उन्हे प्राणीमात्र का सृजन करने का वरदान दिया और उनके द्वारा 84 लाख योनियों को उत्पन्न किया।
श्री विष्णु भगवान -:
                         की उत्पत्ति कर उन्हे जगत में उत्पन्न सभी प्राणियों की रक्षा और भगण-पोषण का कार्य सौप दिया।

 प्रजा का ठीक सुचारु रूप से पालन और हुकुमत करने के लिये एक अत्यंत शक्तिशाली तिव्रगामी सुदर्शन चक्र प्रदान किया।

    बाद में संसार के प्रलय के लिये एक अत्यंत दयालु बाबा भोलेनाथ श्री शंकर भगवान की उत्पत्ति की। उन्हे डमरु, कमण्डल, त्रिशुल आदि प्रदान कर उनके ललाट पर प्रलयकारी तिसरा नेत्र भी प्रदान कर उन्हे प्रलय की शक्ति देकर शक्तिशाली बनाया।
    यथानुसार इनके साथ इनकी देवियां खजाने की अधिपति माँ लक्ष्मी,
    राग-रागिनी वाली वीणावादिनी माँ सरस्वती और
    माँ गौरी को देकर देंवों को सुशोभित किया।

हमारे धर्मशास्त्रो और ग्रथों में विश्वकर्मा के पाँच स्वरुपों और अवतारों का वर्णन प्राप्त होता है।

विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचेता
 धर्मवंशी विश्वकर्मा - महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र
 अंगिरावंशी विश्वकर्मा - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र
 सुधन्वा विश्वकर्म - महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र
 भृंगुवंशी विश्वकर्मा - उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)

ग्रंथों के आधार पर भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूप-
महाभारत सनातन परंपरा  का एक महान धर्म-ग्रन्थ है। इसको हमारी संस्कृति और सभ्यता का एक दर्पण कहा जाता है। इस ग्रन्थ ने महर्षि विश्वकर्मा और उसकी सन्तति की यन्त्रकला,काष्ठ कला , वस्तुशास्र एवं उनके द्वारा निर्मित प्रलयंकारी अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन एवम साक्ष्य प्राप्त होता है ।
    महाभारत कालीन अस्त्र-शस्त्र  को यदि हम आधुनिक विज्ञान का जनक भी कहे तो इसमे कोई अत्युक्ति नही होगी बल्कि ये कहना अतिश्योक्ति नही होगी की तत्कालीन विज्ञान आज के विज्ञान से हजारों हजार गुना आगे था अब तो दुनियाभर के अर्थशास्त्री इतिहासकार, एवम वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि महाभारत युद्ध मे अणु द्वारा संचालित अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया गया था।
   महर्षि विश्वकर्मा विज्ञान के प्रथम अविष्कारक और संस्थापक थे।
वेद ईश्वर ईश्वर की वाणी है वेदों का प्रथम ज्ञान क्रमश: वायु अग्रि आदित्य और अंगिरा इन चार ऋषियों को हुआ है। महर्षि विश्वकर्मा अंगिरा ऋषि की वंश परम्परा मे आते है। महाभारत महर्षि विश्वकर्मा के सम्बन्ध मे कहता है-
त्रयस्टवगिंरस पुत्रा लोके सर्वत्र वोस्ग्रुता:।
बृहस्पतिरुतथ्यश्य संवर्तश्च घृत व्रता:॥
मनुष्याश्चोपजीवन्ति यस्य शिल्पं महात्मन:।
पूज्यन्ति च यं नित्यं विश्वकर्माणम ॥
अर्थ- वे सब प्रकार के भूषणों के बनाने वाले और शिल्पियों मे श्रेष्ठ है। उन्होने देवताओं के असंख्य विमान बनाये है। मनुष्य भी महात्मा विश्वकर्मा के शिपक आश्रय ले जीवन निर्वाह करते है और उन अविनाशी विश्वकर्मा की पूजा करते है।
विश्वकर्मा वंश परम्परा मे सूर्य इन्द्र विष्णु आदिअनेक देव आते है। यह वंश उत्तमोतम ब्राह्मण वंश मे आता है।
त्वष्ट्री तू सवितु भार्या दडंरुप धारिणि असूयत महाभागां सान्तरिक्षेड्विश्वनावुभौ:॥
द्वादेशैवादोतें: पुत्र शुक्र मुख्या नराधिप तेषामवरजो विष्णुयत्र लोका: प्रतिष्ठित:॥
-आदि पर्व अ. ३६मंत्र ३५ और ३६


अर्थ- त्वष्टा की पुत्री संज्ञा भगवान सूर्य की धर्मपत्नी है। वे परम्प सौभाग्यवती है, उन्होने अश्विनी का रुप धारण कर अन्तरिक्ष मे दोनों अश्विनी कुमारों को जन्म दिया। राजन: सूर्य के इन्द्र आदि बारह पुत्र ही है। उनमे भगवान विष्णु सबसे छोटे है। जिनमे ये सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित है।
आदि पर्व अ. ७६ मंत्र ५ से ८ तक मे वर्णित है- एक समय चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोकी के ऎश्वर्य के लिये देवताओं और असुरों मे परस्पर बडा भारी संघर्ष हुआ। इसमे विजयी पाने की इच्छा से देवताओं ने अंगिरा मुनि के पुत्र बृहस्पति को पुरोहित के पद पर वरण और दैत्यों ने शुक्राचार्य को पुरोहित बनाया।
वे दोनों ब्राह्मण सदा आपस मे लाग डाट रखते थे। देवताओं ने उस युद्ध मे आये हुए। जिन दानवों को मारा था। उन्हे शुक्राचार्य ने अपनी संजीवनी क्रिया के बल से पुन: जीवित कर दिया अत: दानव पुन: उठकर देवताओं से युद्ध करने लगे।
आदि पूर्व अ. ७६ मंत्र ११ से १३ मे आगे वर्णित है- इससे देवता शुक्रछाया के भय से उद्विग्र हो उस समय बृहस्पति के ज्येष्ठ पुत्र कच के पास जाकर बोले हे सुब्रह्मन! हम आपके सेवक है। अत: हमे अपनाईये औए हमारी उत्तम सहायता कीजिये। उसे शीघ्र सोखकर यहां ले आइये । इसमे आप हम देवताओं के साथ यज्ञ मे भाग प्राप्त कर सकेगें। राजा वृषपर्वा के समीप आपको प्रियवर शुक्राचार्य के दर्शन हो सकेंगे।
   महर्षि विश्वकर्मा के सुप्रसिद्ध नाम पर विश्वकर्मा वंश परम्परा चली। शिल्प और विज्ञान कला मे निपुण पुरुष ही विश्वकर्मा के नाम से सम्बोधित होते थे। महाभारत काल मे विश्वकर्मा ने विज्ञान को उच्चतम शिखर पर आसीन किया।
आधुनिक युग मे दूसरे लोक से आये तश्तरी सरीखे यानो की अडी चर्चा है।महाभारत मे उसका वर्णन किस प्रकार है।
युष्मानेते वहिष्तन्ति रथा: पंच हिरण्म्त्रा:।
उच्चै : सन्त: प्रकाशनते ज्वलन्तोअग्रि शिखा इव:॥
अर्थ-ययाति बोले ऊपर आकाश मे स्थित प्रज्वलित अग्रि की लपटों के समान जो पांच स्वर्णमय रथ प्रकाशित हो रहे है ये आप लोगों को स्वर्ग मे ले जायेगें दुर्धर्षवीर अर्जुन ने महाभारत मे जिस अस्त्र-शस्त्र का प्रदर्शन किया, वह आधुनिक विज्ञान के लिए एक महान वैज्ञानिक रहस्य है। महाभारत कहता है-
तस्मिन प्रभुदिते रंगे कथचित प्रत्युपस्थिते।
दर्शयामास बीभत्सरा चार्वा या स्रलाघवम॥

प्रथम अवतार

विश्वकर्माSभवत्पूर्व ब्रह्मण स्त्वपराSतनुः। त्वष्ट्रः प्रजापतेः पुत्रो निपुणः सर्व कर्मस।।

अर्थः प्रत्यक्ष आदि ब्रह्मा विश्वकर्मा त्वष्टा प्रजापति का पुत्र पहले उत्पन्न हुआ और वह सब कामों मे निपुण था।

दूसरा अवतार

स्कन्द पुराण प्रभास खंड सोमनाथ माहात्म्य सोम पुत्र संवाद में विश्वकर्मा के दूसरे अवतार का वर्णन इस भातिं मिलता है। ईश्वर उचावः

शिल्पोत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि श्रृणु षण्मुख यत्नतः। विश्वकर्माSभवत्पूर्व शिल्पिनां शिव कर्मणाम्।। मदंगेषु च सभूंताः पुत्रा पंच जटाधराः। हस्त कौशल संपूर्णाः पंच ब्रह्मरताः सदा।।

एक समय कैलाश पर्वत पर शिवजी, पार्वती, गणपति आदि सब बैठे थे उस समय स्कन्दजी ने गणपतिजी के रत्नजडित दातों और पार्वती जी के जवाहरात से जडें हुए जेवरों को देखकर प्रश्न किया कि, हे पार्वतीनाथ, आप यह बताने की कृपा करे कि ये हीरे जवाहरात चमकिले पदार्थो किसने निर्मित किये? इसके उत्तर में भोलानाथ शंकर ने कहा कि शिल्पियों के अधिपति श्री विश्वकर्मा की उत्पति सुनो। शिल्प के प्रवर्त्तक विश्वकर्मा पांच मुखों से पांच जटाधरी पुत्र उत्पन्न हुए जिन के नाम मनु, मय, शिल्प, त्वष्टा, दैवेज्ञ थे।

तीसरा अवतार

आर्दव वसु प्रभास नामक को अंगिरा की पुत्री बृहस्पति जी की बहिन योगसिद्ध विवाही गई और अष्टम वसु प्रभाव से जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम विश्वकर्मा हुआ जो शिल्प प्रजापति कहलाया इसका वर्णन वायुपुराण अ.22 उत्तर भाग में दिया हैः

बृहस्पतेस्तु भगिनो वरस्त्री ब्रह्मचारिणी। योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता चरते सदा।। प्रभासस्य तु सा भार्या वसु नामष्ट मस्य तु। विश्वकर्मा सुत स्तस्यां जातः शिल्प प्रजापतिः।।

मत्स्य पुराण अ.5 में भी लिखा हैः

विश्वकर्मा प्रभासस्य पुत्रः शिल्प प्रजापतिः। प्रसाद भवनोद्यान प्रतिमा भूषणादिषु। तडागा राम कूप्रेषु स्मृतः सोमSवर्धकी।।

अर्थः प्रभास का पुत्र शिल्प प्रजापति विश्वकर्मा देव, मन्दिर, भवन, देवमूर्ति, जेवर, तालाब, बावडी और कुएं निर्माण करने देव आचार्य थे।

आदित्य पुराण में भी कहा है किः

विश्वकर्मा प्रभासस्य धर्मस्थः पातु स ततः।।

महाभारत आदि पर्व विष्णु पुराण औरं भागवत में भी इसका उल्लेख किया गया है।


रजनीश मार्तण्ड
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